मिलर कहते थे संसार जिन्हें दुश्चरित्र कहता रहा समीप जाकर मैंने देखा उनमें भी कितनी ही अच्छाइयाँ थीं। लोग इन्हें सच्चरित्र कहते रहे उनके पास से परख कर मैंने पाया उनमें भी ढेरों कमजोरियाँ थीं। इसलिए मैंने लोगों को सच्चरित्र और दुश्चरित्र के रूप में वर्गीकरण करना बन्द कर दिया है और सोचता हूँ आदमी न देवता है न दैत्य। वह एक मध्यवर्ती सत्ता है जिसमें नेकी और बदी दोनों ही मौजूद हैं यह परिस्थितियों पर निर्भर है कि किसका क्या पक्ष उठा और किसका गिरा ? समय-समय पर उस उठाव और गिराव में भी परिवर्तन आते रहते हैं। इसलिए किसको क्या काना जाय यह कहते नहीं बनता ? तो भी एक कसौटी तो रखी है कि मूर्खों को पिछड़े लोगों के साथ कौन किस प्रकार व्यवहार करता है ? इसे देखकर उसके श्रेष्ठ और निकृष्ट होने का किसी हद तक पता लगाया जा सकता है।