तस्येन्द्रियाण्यवश्याति दृश्टाश्वा इव सारथेः॥
जो योग साधन से रहित, असावधान, चंचल चित्त और संशयग्रस्त रहता है, उसका मन भी अज्ञानी विषयी रहता है और उसकी इन्द्रियाँ अनाड़ी सारथी के घोड़ों की तरह वश में नहीं रहती।