विज्ञान अभी तक आदि-मूल के विष में अनजान है-
विज्ञान (साइंस) जानने वालों की हैसियत से हमको यह स्वीकार कर लेना चाहिये कि सरल से सरल वस्तु, यहाँ तक कि कंकड़ के भी आदि मूल का हमें कुछ ज्ञान नहीं। चट्टानों के टूटने-फूटने से रेत बनता है और उसी रेत के इकट्ठा हो जाने से फिर चट्टानें बन सकती हैं। परंतु इससे आदि मूल का पता नहीं चल सकता। कोई वैज्ञानिक यह नहीं बता सकता कि पहले मुर्गी थी या उसका अंडा? यह सृष्टि की जटिल समस्या का एक साधारण रूप है। यह सत्य है कि इस पृथ्वी का, जो मिट्टी का बना हुआ एक लोथड़ा है, आरंभ अवश्य था और इतिहास भी अवश्य था। साइंस को इसका अवश्य कुछ-कुछ ज्ञान है। उस समय का भी पता लग सकता है, जब यह पिछली हुई वस्तु थी। चन्द्रमा कैसे और किसके द्वारा उत्पन्न हुआ, इसकी भी अटकल लगाली गई है। इस प्रकार एक अर्थ में पृथ्वी और चंद्रमा दोनों की उत्पत्ति अवश्य हुई। पर ये सब बातें सृष्टि के आदि मूल के सामने कुछ भी नहीं। पृथ्वी का पूरा इतिहास भी सृष्टि के अनन्त परिमाण और काल की अपेक्षा में एक क्षण-मात्र की तरह है। इन बातों का निर्णय और हमारा संतोष तभी हो सकता है, जब हम उस तत्त्व को और उसके संचालन कर्त्ता को जान ले जो ‘नित्य’है।