इस युग में सबसे बड़ा, सबसे व्यापक, सबसे महत्वपूर्ण और सबसे आवश्यक धर्मानुष्ठान गत बसन्त-पंचमी से आरम्भ किया गया है। उसके अंतर्गत प्रतिदिन 24 लक्ष का एक गायत्री महापुरश्चरण हुआ करेगा और इसमें 24 हजार भागीदारों का भाग होगा। एक माला (108 मंत्र) जप और युग-निर्माण सत्संकल्प का एक पाठ इस पुरश्चरण के हर भागीदार को नित्य करना होगा। यह समाज कल्याण के लिए-नवयुग-निर्माण के लिए होगा। व्यक्तिगत कल्याण और उत्कर्ष के लिए एक माला गायत्री मंत्र की यह भागीदार और भी किया करेंगे। इस प्रकार प्रतिदिन उन्हें दो माला का जप करना पड़ेगा। व्यक्तिगत कल्याण के लिये एक पाठ गायत्री चालीसा का और समाज कल्याण के लिए एक पाठ युग-निर्माण संकल्प का भी साथ-साथ करने से दो पाठ भी होते रहेंगे। इस प्रकार दो माला जप और दो पाठ करने वाले नैष्ठिक साधक माने जायेंगे।
अधिक उपासना कितनी भी हो सकती है पर न्यूनतम दो माला जप और दो पाठ उपरोक्त क्रम से नित्य होने ही चाहिये। ऐसे 24 हजार नैष्ठिक साधक इस महा-अनुष्ठान के भागीदार रहेंगे। अभी इस वर्ष का इतना ही संकल्प है। स्थिति के अनुरूप इसे सवा करोड़ या चौबीस करोड़ प्रतिदिन का भी किया जा सकता है।
उपासना के पीछे दृढ़-निष्ठा का बल ही प्रधान कार्य करता है। दुर्बल-निष्ठा वाले- कभी किया, कभी छोड़ा वाले शिथिल मनोभूमि के लोग वह आनन्द एवं लाभ नहीं उठा सकते, जो निष्ठावानों के लिए ही सम्भव है। इसलिये इस अनुष्ठान के माध्यम से निष्ठावान उपासकों को आगे बढ़ाया गया है। यह अनुष्ठान दस वर्ष तक चलेगा। इसलिये इन भागीदारों में वे ही आवेंगे, जिनका अन्तःकरण अपेक्षाकृत अधिक श्रद्धा एवं निष्ठा से भरा है। ऐसी मनोभूमि वालों की कुछ आध्यात्मिक सहायता की जाय तो वह फलवती भी होती है। चंचल और अस्थिर चित्त वाले तो इधर-उधर भटकते मात्र रह कर अपना समय ही गँवाते हैं। इसलिए उपासना के इस महा-अनुष्ठान उपक्रम का एक उद्देश्य निष्ठा की परिपक्वता प्रतिष्ठापित करना भी है।
यों इस महापुरश्चरण के अंतर्गत पाँच-पाँच कुण्ड के 200 सामूहिक यज्ञ भी होंगे जिससे एक हजार कुण्ड की योजना हर वर्ष पूरी होती रहेगी। पर इसकी अन्तिम पूर्णाहुति दस वर्ष बाद होगी। आगामी दस वर्ष ही मानवीय भाग्य और भविष्य के निर्धारण में अति महत्वपूर्ण भूमिका सम्पादित करने वाले हैं, इसलिये इसी अवधि में अपना महापुरश्चरण चलेगा। इसकी अन्तिम पूर्णाहुति किस रूप में कितनी विशाल होगी, इसकी चर्चा अभी से करना अप्रासंगिक होगा।
यह महापुरश्चरण ठीक तरह चलता रहे, सब भागीदार नियमित रूप से अपना कर्तव्य निबाहते रहें और अनुष्ठान की निर्धारित संख्या में कोई व्यक्ति-क्रम न होने पाये इसके लिए हर दस भागीदारों के पीछे एक ऋत्विज वरण होने की व्यवस्था की गई है। ऋत्विज अपने जिम्मे के भागीदारों से संपर्क रखेगा और यह पता लगाता रहेगा कि वे जप संख्या ठीक तरह पूरी कर रहे हैं या नहीं? यदि कोई सदस्य शिथिल पड़ता है तो उसके स्थान पर नया भागीदार बनाना अथवा उस कमी को पूरा करना का ऋत्विज का काम है। चूंकि यह पुरश्चरण का प्रथम चरण है इसलिये ऋत्विजों पर पाँच भागीदार की ही फिलहाल जिम्मेदारी छोड़ी गई है, वे प्रयत्न करेंगे कि एक वर्ष में यह पाँच की संख्या बढ़ कर दस हो जाय।
इस अंक में एक फार्म संलग्न है। उपासना में श्रद्धा रखने वाले हर धर्म-प्रेमी का कर्तव्य है कि वह अपने क्षेत्र में कम-से-कम पाँच भागीदार बना कर स्वयं ऋत्विज का उत्तरदायित्व ग्रहण करें और संलग्न फार्म में अपने सदस्यों का नाम पता भर कर मथुरा भेजें। आशा है यह महापुरश्चरण बड़े शान और सफलता के साथ सम्पन्न होगा। आवश्यक संख्या 24 हजार भागीदार शीघ्र पूरे हो जायेंगे।