एक बार अपने परिजनों के साथ कुछ दिन लगातार रहने- अपने जी की पूरी बात कह लेने और उनकी पूरी बात सुन लेने के उद्देश्य से परिजनों को हमने ज्येष्ठ और आश्विन के शिविरों में मथुरा आने के लिए आमन्त्रित किया है। प्रसन्नता की बात है कि वह निमन्त्रण प्रायः सभी भावनाशील आत्मीय जनों ने स्वीकार कर लिया है। आशा है, इन तीन वर्षों में क्रमशः अधिकाँश परिजन मथुरा आयेंगे और इन 9-9 दिनों के शिविरों में सम्मिलित रहेंगे। यह विचार विनियम शिविर कहलायेंगे। हम लोग मिल बैठ कर व्यक्तिगत और सामूहिक सभी स्तर की समस्याओं पर परस्पर विचारों का आदान-प्रदान कर सकें और किन्हीं उपयुक्त निष्कर्षों पर पहुँच सकें, यही इन शिविरों का प्रमुख प्रयोजन है।
इस बार गर्मियों के अवकाश में गत वर्ष की भाँति दो शिविर रखे गये हैं। प्रथम शिविर दिनाँक 28 मई से आरम्भ होकर दिनाँक 6 जून तक 9 दिन चलेगा। दिनाँक 7 जून को एक दिन अवकाश-दिन, इसलिये रखा गया है कि प्रथम शिविर के लोगों को जाने और दूसरे शिविर के आगन्तुकों के ठहराने की व्यवस्था बन सके। दूसरा शिविर दिनाँक 8 से 16 जून तक चलेगा। चूँकि गायत्री तपोभूमि में 250 से अधिक व्यक्तियों के ठहरने का स्थान नहीं है। इसलिये दो बार ज्येष्ठ में, दो बार आश्विन में शिविर करने पड़ते हैं। फिर विचार विनियम भी अधिक लोगों के साथ एक ही समय में नहीं हो सकता।
इसलिये चार शिविर ही उपयुक्त समझे गये हैं। स्थान की कमी और आने वालों की इच्छा अधिक रहने की बात ध्यान में रखते हुए स्वीकृति लेकर ही आने का नियम बनाया गया है। इस नियम का पालन किये बिना सब प्रकार की सारी अव्यवस्था ही हो सकती है। इसलिये आगन्तुकों से अनुरोध है कि वे यथासम्भव शीघ्र ही स्वीकृति प्राप्त कर लें और यह स्पष्ट लिख दें कि वे किस शिविर में आना पसन्द करेंगे। जिनकी गोदी में छोटे बच्चे हैं, ऐसी महिलाओं को न लाना ही उचित है। ऐसे रोगी जिनके कारण दूसरों को असुविधा हो या छूत लगे वे भी इन अवसरों पर न आयें।
चार महीने के लिए आने वाले साधक और एक वर्ष के लिए आने वाले शिक्षार्थी दूसरे शिविर में आयें और शिविर का लाभ लेकर तुरन्त ही अपना शिक्षण आरम्भ कर दें। शिविर आरम्भ होने से एक दिन पूर्व ही मथुरा आ जाना चाहिए, ताकि जिस दिन से कार्य आरम्भ होना है, उस दिन से सभी कार्यक्रमों में सम्मिलित रहा जा सके।
9 दिन में एक 24 हजार गायत्री का लघु अनुष्ठान यहाँ आकर प्रायः सभी को करना चाहिये। दो दिन ब्रज के सभी तीर्थों की यात्रा बस द्वारा करने की भी व्यवस्था बनाई गई है, जो उसमें जाना चाहे जा सकेंगे। भोजन-व्यय सभी को अपना उठाना होगा। जो लोग चाहें स्वयं बना लिया करेंगे। शेष के लिए, दलिया, खिचड़ी, चावल, दाल जैसी रांध कर बनाई जाने वाली वस्तुओं की व्यवस्था करा दी जायेगी। ऐसा भोजन सस्ता भी पड़ता है और हल्का भी रहता है। अनुष्ठान के दिनों में ऐसा हल्का भोजन एक प्रकार उपवास ही है। थाली, लोटा जैसे आवश्यक बर्तन सभी को साथ लेकर आना चाहिए।
शिविर में सम्मिलित होने की स्वीकृति प्राप्त करने के लिये जो पत्र भेजे जाँय उनमें अपना पूरा नाम, पता आयु, शिक्षा, जाति, व्यवसाय आदि का भी उल्लेख करना चाहिये। साथ में यदि स्त्री, बच्चे आदि हों तो उनका पूरा एवं स्पष्ट विवरण भी लिखना चाहिये। आवेदन-पत्र एक अलग कागज पर लिखना चाहिये, ताकि उसे फाइल में लगाया जा सके।
देर में आवेदन-पत्र भेजने वालों की यदि ज्येष्ठ शिविरों में स्थान न मिल सका तो उन्हें आश्विन के लिए रुकने को कहा जायेगा।