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Akhand Jyoti
Year 1998
Version 1
जिजीविषा के बल...
जिजीविषा के बल पर जीवित रहे ये अजूबे
July 1998
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Page Titles
सेवा का मर्म
पूर्णता-प्राप्ति की आत्मबोध साधना
गायत्री भक्तिः मानव का पंचम पुरुषार्थ
पूज्य गुरुदेव का विशेष लेख (पुनप्रर्काशित) विरोध न करना पाप का परोक्ष समर्थन
जो पढ़ें, उसे जीवन में उतारें भी
आत्मसम्मान की धमक के साथ भारत का मानव जाति के लिए संदेश
आज की ज्वलन्त समस्याओं को सुलझाएगा- वाजपेय यज्ञ
मस्तिष्क का उपयोग करेंगे तो सठियाएँगे नहीं
ईश्वर से सच्चा प्रेम ही आस्तिकता है
हास्यः मानव जीवन का परम पुरुषार्थ
सच्चिदानन्द रूप है परमात्मा
जिजीविषा के बल पर जीवित रहे ये अजूबे
नारी शक्ति ने की मन्दिर की रक्षा
प्राणचेतना में निहित चमत्कारी सामर्थ्य
यज्ञोपैथीः एक विज्ञानसम्मत चिकित्सा प्रणाली
क्या अट्टालिकाएँ समाधान खोज सकेंगी
क्रोध मिटे तो साधना फले
विकलांगता प्रगति में बाधक नहीं
अंतरंग की उपासना सिखाती है भारती संस्कृति
बल ही नहीं, शान्ति व धैर्य भी अनिवार्य
ऐसी चमत्कारी क्षमताएँ तो जी का जंजाल हैं
श्रद्धा के पात्र इस तरह बनते हैं
परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- (गुरुपूणमा पर्व १९८० पर दिया गया पावन संदेश)
आप भी बन सकते हैं ऋद्धि-सिद्धियों के स्वामी
नवसृजन अंक (जून ९८) के संदर्भ में पूज्यवर का चिन्तन नवनीत- स्वर्ग और देवत्व के अवतरण की प्रयोगशाला है शान्तिकुञ्ज
विदाई की वेला में दिए गए संदेश से कुछ अमृतकण- गुरुपर्व के संदर्भ में
अपनों से अपनी बात- अपने अंदर सोए देव को जगाने आया है यह गुरुपर्व
समपर्ण पर्व (कविता) -मंगल विजय
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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