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Akhand Jyoti
Year 1974
Version 1
इतना तो व्यस्त...
इतना तो व्यस्त और विवश होते हुए भी कर सकते हैं
January 1974
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Page Titles
ईश्वर प्रदत्त उपहार और प्यार अनुदान
वसंत पर्व की पुण्य वेला में हमारा अगला कदम
प्राचीन भारत की महान् प्रगति का मूल भूत आधार
हम पतन के गर्त में कैसे गिरें
हमारी सबसे प्रमुख और सबसे प्रधान आवश्यकता
सर्वतोमुखी प्रगति का समर्थ आधार
यह विडम्बना न सुधरेगी, न बदलेगी
इस आपत्ति काल में हम थोड़ा साहस तो करें ही
धर्म चक्र प्रवर्तन के लिए आंशिक समयदान
'स्याम देश' जिससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं
यह कदम हम नहीं तो और कौन उठायेगाा
कनिष्ठ वानप्रस्थों की स्वल्प कालदीन शिक्षा-दीक्षा
महान् प्रयोजन के लिए महान साहस भी चाहिए
हमें कहाँ, कैसे कब और क्या करना होगा
वानप्रस्थों का तात्कालिक कार्यक्रम शिविर संचालन
एक और महत्त्वपूर्ण चरण तीर्थ यात्रा संयोजन
एकाकी प्रयासों से भी बहुत कुछ हो सकता है
सद्भावनाओं का सत्प्रवृत्तियों में नियोजन
हमारे भावी कार्यक्रम जिन्हें सृजन सेना के सैनिक ही पूरा करेंगे
हमारे भावी कार्यक्रम जिन्हें सृजन सेना के सैनिक ही पूरा करेंगे
स्वार्थ और परमार्थ की समन्वित साधना
इतना तो व्यस्त और विवश होते हुए भी कर सकते हैं
आह्वान, आमंत्रण और अनुरोध
न हारें चेतना के कण?-गीत
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
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यो
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नः
प्र
चो
द
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त्
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