योग के नाम पर मायाचार

मायावी लोगों ने किसी भी क्षेत्र को अछूता नहीं छोड़ा है । उन्हें जहाँ कहीं भी थोड़ी-सी आड़ मिल जाती है छिप बैठते हैं । अनेकों चोर, उठाईगीरे, डाकू, ठग, दुराचारी, व्यसनी, नशेबाज एवं हरामखोर मनुष्य कानूनी पकड़ तथा जनता की आँखों से बचने के लिए पवित्र साधु वेष में जा छिपते हैं और इस आड़ में बैठे-बैठे मौज करते रहते हैं । खुराफाती दिमागों में यह विशेषता होती है कि वे चुप नहीं बैठ सकते । गुलछर्रे उड़ाने के लिए उनका दिमाग कोई न कोई तरकीब खोज निकालता है । सन्त वेश की आड़ में छिप बैठने से ही उन्हें संतोष नहीं होता वे आगे धावा बोलते हैं और जनता के भण्डार से यश तथा धन की लूट मचा देते हैं । ऐसे लोग अपना प्रधान हथियार चमत्कारों को बनाते हैं । योग शास्त्रों में ऐसे वर्णन आते हैं कि योगियों को ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है और अलौकिक चमत्कारी करतब दिखा सकते हैं । यह उक्ति न केवल पुस्तकों में वर्णित है वरन् जनसाधारण में इसका विश्वास भी बहुत गहरा जमा हुआ है । इस स्थिति से लाभ उठाकर धन और यश लूटने के लिये घूर्त लोग अपने आप को पहूँचा हुआ सिद्ध साबित करने का प्रयत्न करते हैं । चूकि उनमें तप तो होता नहीं त्याग और साधना और तपश्चर्या के बिना सच्ची सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती । ऐसे धूर्त लोगों में प्रत्यक्ष अनुभव में आये हुए दुराचारों में से कुछ को इस पुस्तक में प्रकाशित किया जा रहा है । आशा हैं कि यह पुस्तक धूर्तता और अन्धविश्वास के विनाश में सहायक सिद्ध होगी ।

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