गायत्री शक्तिपीठ:गुरुदेव की दृष्टि, हमारे दायित्व

युगऋषि ने नवसृजन के लिए जो सूक्ष्म स्थूल तानाबाना बुना, उसके अन्तर्गत गायत्री शक्तिपीठों- प्रज्ञापीठों की स्थापना का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है ।। मनुष्य मात्र, प्राणिमात्र के लिए उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करने जैसे महान प्रयोजन की पूर्ति के लिए गायत्री महाविद्या और यज्ञ विज्ञान के परिष्कृत स्वरूप को जन जीवन में प्रतिष्ठित करना जरूरी समझा गया ।। उसी बीच वसंत पर्व ११७१ पर २४ गायत्री शक्तिपीठों की स्थापना का दिव्य संकल्प उतरा ।। दैवी प्रेरणा से अनुप्राणित संकल्प ने जाग्रत आत्माओं को तत्काल प्रभावित किया तथा तमाम विसंगतियों और साधनों के अभाव के बीच भी पीठों के निर्माण का क्रम तीव्र गति से आगे बढ़ा ।। डेढ़ वर्ष के अन्दर उनकी संख्या सैकड़ों तक जा पहुँची ।। कुछ ही वर्षों में वह संख्या २४०० का ऑकड़ा पार कर गयी ।। गायत्री शक्तिपीठों- प्रज्ञापीठों की इस विस्तार प्रक्रिया को विचारशील प्रत्यक्ष दर्शियों ने अदभुत- अभूतपूर्व माना ।। गायत्री शक्तिपीठों के संकल्प का अवतरण सन् १९७९ में हुआ ।। उसको २५ वर्ष पूरे हुए ।। २५ वर्ष में अभियान के अन्दर जवानी फूट पड़नी चाहिए ।। जवानी का अर्थ है नव सृजन की क्षमता और उमंग का उभार ।। युगऋषि ने गायत्री शक्तिपीठों को जिस उद्देश्य के लिए स्थापित करने की

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