अन्धविश्वास से लाभ कुछ नहीं हानि अपार हैं

अन्धविश्वास से लाभ कुछ नहीं हानि अपार है मनुष्य की कृतियों में अनेक दूषण हो सकते हैं परमात्मा की कृतियों में नहीं, भगवान् ने जो कुछ बनाया है, सुन्दर एवं शुभ है । मनुष्य के सम्पर्क में आने से कई बार प्रभु की अच्छी कृतियाँ भी दोष-युक्त बन जाती हैं । उनके दोष-दुर्गुण ही उत्तमता को निकृष्टता में बदल देते हैं । परमात्मा दोष-दुर्गुणों से रहित है, इसलिए उसकी कृतियाँ भी एक से एक अद्भुत, सुन्दर एवं शुभ हैं । उनमें दोष ढूंढना, मनुष्य की अपनी बुद्धि-विकृति का भौंडा प्रदर्शन मात्र ही कहा जायगा । मनुष्य जिन चीजों को बनाता है वे अल्पजीवी और दोषपूर्ण रहतीं हैं । वे समय के प्रभाव से अथवा प्राणियों के सम्पर्क से बिगड़ती और दूषित होती रहती हैं । पीछे उनमें सुधार भी होता रहता है, पर जो कुछ ईश्वर कृत है उसका बाह्य कलेवर भले हो प्रकृति-नियमों के अनुसार बदलता रहे, मूल स्वरूप में कोई हेर-फेर नहीं होता । स्वरूपवान् वस्तुओं में तो यह संसर्ग दोष आता भी है, पर जो सूक्ष्म और सनातन तथ्य हैं, उनमें इस प्रकार की विकृतियों की भी गुंजायश नहीं है । सूर्य, चन्द्रमा, तारागण, समुद्र, मेघ, वायु, अग्नि, पृथ्वी, आकाश जैसे तत्व सृष्टि के आदि से ही एक

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