आदर्श विवाहों का प्रचलन कैसे हो ?

आदर्श विवाहों का प्रचलन कैसे हो ? इस युग की यह निर्विवाद आवश्यकता है कि हम भारतीय अपने विवाह-शादियों में होने वाले अनावश्यक अपव्यय को जल्द से जल्द बन्द करें । हमारी औसत आमदनी इतनी नहीं है जिसमें कि मनुष्य की तरह ठीक प्रकार जिया जा सके । यदि किसी की कुछ आमदनी अच्छी हो भी तो उसको उचित है कि अपने और अपने परिवार की प्रगति के आवश्यक कार्यो में उसका उपयोग करे । स्वास्थ्य बिगड़े पड़े हैं, पौष्टिक आहार और अच्छी चिकित्सा के बिना हम में से अधिकांश व्यक्ति दुर्बलता और अस्वस्थता के शिकार हैं । शिक्षा वृद्धि के साधन-सुविघा जुटाये बिना हमारा बौद्धिक स्तर गया-गुजरा ही बना रहेगा । आजीविका में वृद्धि के लिए कुछ नये उद्योग आदि आरंभ करने या वर्तमान साधनों को सुधारने, बढ़ाने के लिए पूँजी चाहिए । फिर देश, धर्म, समाज, संस्कृति की स्थिति भी दयनीय है उन्हें सुविकसित बनाने के लिए आर्थिक योगदान करना हमारा नैतिक कर्तव्य है । इन सब आवश्यताओं की पूर्ति हम कहाँ कर पाते हैं ? उचित आवश्यकताऐं पूरी करने के लिए हमारी आर्थिक स्थिति अब की अपेक्षा बहुत अच्छी होनी चाहिए । अभाव के कारण प्रगति का मार्ग बहुत हद तक अवरुद्ध ही पड़ा रहता हैं और किसी प्रकार जिन्दगी के दिन पूरे करना ही वर्तमान स्थिति एवं साधनों में सम्भव हो पाता है । समृद्ध सुविकसित जीवन की आकांक्षा पूरी करने की व्यवस्था आर्थिक कठिनाइयाँ बनने ही नही देती ।

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