विवाह यज्ञ है इसमें दुष्टता और भ्रष्टता न जोड़ें

प्रजनन संबंधी ये भ्रांतियाँ विकास में बाधक अपने समाज में कुरीतियों, विकृति, परंपराओं तथा अंध विश्वासों की भरमार है? ऐसी प्रथाएँ जड़ जमाए बैठी हैं जिनसे अपार हानि होती है। किंतु लोग इसलिए उन्हें छाती से चिपकाए बैठे हैं कि वे लंबे समय से चली आ रही हैं। बाल विवाह, पर्दा प्रथा, दहेज प्रथा, विवाहों में होने वाला अपव्यय, मृत्यु भोज, छूत-अछूत, पशुबलि जैसी कुरीतियों से राई-रत्ती भर भी समाज को लाभ नहीं है, फिर भी जन सामान्य प्रथा परंपरा के नाम पर उन्हें अपनाए हुए हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें छोड़ने से वे धर्मच्युत हो जाएँगे। ठीक ऐसी ही एक मूढ़ मान्यता यह भी है कि संतान होना सौभाग्य का तथा न होना दुर्भाग्य का चिन्ह है। इस मान्यता के समर्थन में जो तर्क दिए जाते हैं वे और भी विचित्र हैं। कहा जाता है कि परलोक में संतान के हाथ से ही जल-पिंडदान मिलता ह अन्यथा भूखों मरता पड़ता है, दीर्धकाल तक नारकीय यंत्रणा सहनी पड़ती है। यही बात औचित्य की कसौटी पर कसी जाए तो खरी नहीं उतरती। थोड़ी देर के लिए उपरोक्त मान्यता को सब मान लिया जाए तो ऐसी स्थिति में कर्मफल के सिद्धांत को भी समाप्त करना होगा, जिसमें यह कहा गया है कि हर प्राणी को अपने ही कर्मों का

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