शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता

शिक्षा की महत्ता और गरिमा, उपयोगिता और आवश्यकता का वर्णन अनादि काल से लेकर अब तक के सभी मनीषियों ने पूरा जोर देते हुए किया है । यही कारण है कि 'विद्या से अमृत प्राप्त होने' जैसे सूत्रों का प्रचलन हुआ । सरस्वती पूजन प्रकारांतर से विद्या की ही अभ्यर्थना है । गणेश पूजन भी इसी संदर्भ में किया जाता है । विद्वान सर्वत्र पूजे जाते हैं, जबकि शासन अधिकारी केवल अपने क्षेत्र में ही पूजे हैं । धन संपत्ति जिस-तिस प्रकार खर्च होती, चुराई जाती, नष्ट की जाती भी देखी जाती है, किंतु ज्ञान-संपदा बाँटने पर अन्य पदार्थों की तरह घटती नहीं, बल्कि और अधिक बढ़ती ही रहती है । सुसंस्कारिता के रूप में यह जन्म-जन्मांतरों तक साथ देती रहती है । विद्या दान को सर्वोत्कृष्ट दान माना गया है । अन्न, वस्त्र, औषधि, धन आदि के अनुदान कष्ट-पीड़ितों, अभाव ग्रस्तों की सामयिक सहायता भर कर पाते हैं । उससे तत्काल राहत तो मिलती है, जो आवश्यक भी है; परंतु चिर स्थाई समाधान इतने भर से नहीं होता । इसके लिए श्रमशीलता दूरदर्शिता, सूझ-बूझ के सहारे, स्वावलंबन के चिर स्थायी प्रबंध करने होते हैं । यह सब योग्यता एवं प्रतिभा के सहारे ही किया जा सकता है । स्पष्ट है कि स्थिर समाधान के लिए, सुविकसित-समुन्नत स्तर पाने के लिए शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है । इन आधारों के सहारे स्वयं भी पार हुआ जा सकता है और अपनी नाव में बिठाकर औरों को भी पार टिनया जा सकता है ।

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118