सदभावनाएँ ही प्रसन्नता की जननी है । आन्तरिक पवित्रता, निर्ममता और स्वच्छता से प्रसन्नता सहज रूप में आती है । महापुरुषों की सतत् प्रसन्नता का कारण उनकी आन्तरिक पवित्रता एवं शुद्धता है । उनकी निर्मल हँसी से दुःखी एवं क्लेशयुक्त व्यक्ति प्रसन्न हुए बिना नहीं रहते । उनके आस-पास का वातावरण भी वैसा बना रहता है । इसीलिए प्रसन्नता प्राप्ति के उद्देश्य की पूर्ति तभी हो सकती है, जब अपना अन्तर स्वच्छ से स्वच्छतर बनता जायेगा । जब अपने आन्तरिक क्षेत्र में घृणा, अनुदारता, स्वार्थपरता के आवरण हटेंगे और सबके लिये प्रेम, सदभाव, उदारता उत्पन्न होंगे तो प्रसन्नता की संभावना भी निकटस्थ होती जायेगी ।