सफल दाम्पत्य जीवन के मूलभूत आधार

नारी निस्संदेह समर्पण और त्याग की प्रतिमा है । यह समर्पण उसकी दुर्बलता नहीं गरिमा है। विचारशील मनस्वियों ने इस गरिमा को सदा समझा है, इसीलिए नारी की प्रशंसा मुक्त कण्ठ से की है किन्तु समर्पण में महत्ता और सार्थकता तभी है, जब वह विवेकपूर्ण हो । आत्महीनता के भाव से किया गया समर्पण दास्य-भाव कहलायेगा। समर्पण और गुलामी के अंतर को सदा स्मरण रखना चाहिए। समर्पण सदा श्रेष्ठता के प्रति होता है । उससे मन में आस्था-उत्साह का भाव स्थिर व दृढ़ होता है । दासता किसी न किसी रूप में अनौचित्य को बढ़ाती है। उसमें विवशता की वेदना रहती है समर्पण का स्वाभिमान भरा उल्लास-आनंद नहीं।

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118