विज्ञान एवं अध्यात्म का समन्वित स्वरूप

इस विश्व ब्रह्मांड में दो शक्ति-सत्ताएँ आच्छादित हैं। एक जड़ दूसरी चेतन। इन्हीं को प्रकृति और पुरुष भी कहते हैं। स्थूल और सूक्ष्म भी । इन दोनों का पृथक-पृथक अस्तित्व और महत्त्व है, पर सुयोग तभी बनता है जब वे एक-दूसरे की सहायक बनकर संयुक्त शक्ति के रूप में विकसित होती और अपने चमत्कार दिखाती हैं। उदाहरण के लिए शरीर को ही लिया जाए । काया पंचतत्त्वों द्वारा विनिर्मित है। अंग-अवयवों में रक्त-मांस, तंतु-झिल्ली, अस्थि-मज्जा का मिलन-एकीकरण है। इसलिए उनसे इच्छानुरूप काम कराया जा सकता है। शरीर तंत्र की प्रकृति की करामात भी इसे कह सकते हैं। इतने पर भी वह अपूर्ण है । उसके भीतर एक चेतना काम करती है । उसी का अचेतन भाग श्वास-प्रश्वास, निमेष-उन्मेष, आकुंचन-प्रकुंचन, सुषुप्ति-जागृति आदि की व्यवस्था बनाता रहता है । उसी का दूसरा पक्ष है-सचेतन। जो सोचता, निर्णय करता और इच्छानुरूप कार्य कूरने का आदेश देकर अनेकानेक क्रिया-कृत्य संपन्न करता है ।

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118