चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग

प्रकृति का प्रत्येक घटक अपने एक निश्चित नियम के अनुसार जन्म लेता और विकास करता है । यह नियम-व्यवस्था किन्हीं विशिष्ट क्षेत्रों के लिए ही लागू नहीं होती, बल्कि जहाँ कहीं भी प्रगति, विकास और गतिशीलता दिखाई देती है, वहाँ यही नियम काम करते दिखाई देते हैं ।

समझा जाता है कि मनुष्य ने इस प्रकृति में अन्य सभी प्राणियों से अधिक उन्नति तथा विकास किया है । उस उन्नति और विकास का श्रेय उसकी बुद्धिमत्ता को दिया जाता है । मनुष्य की बुद्धिमत्ता को उसकी प्रगति का आधार मानने में कोई हर्ज भी नहीं है क्योंकि उसने बुद्धिबल से ही अन्य प्राणियों की तुलना में इतनी अधिक उन्नति की है, जिससे सृष्टि का मुकुटमणि बन सकने का श्रेय उसे प्राप्त हो सका । इस मान्यता में यदि कुछ तथ्य है तो उसमें एक संशोधन यह और करना पड़ेगा कि बुद्धिमत्ता उसे सहकारिता के आधार पर ही उपलब्ध हुई है । क्या मनुष्य ने उन्नति अपनी मस्तिष्कीय विशेषता के कारण की है? मोटी बुद्धि ही इस मान्यता का अंधा समर्थन कर सकती है । सूक्ष्म चिंतन का निष्कर्ष यही होता है कि कोई-न-कोई आत्मिक सद्गुण ही उसके मस्तिष्क समेत अनेक क्षमताओं को विकसित करने का आधार हो सकता है । महत्त्वपूर्ण प्रगति न तो शरीर की संरचना के आधार पर संभव होती है और न मस्तिष्कीय तीक्ष्णता पर अवतरित रहती है । उसका प्रधान कारण अंतःकरण के कुछ भावनात्मक तत्त्व ही होते हैं । उन निष्ठाओं

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118