बच्चे बढ़ाकर अपने पैरों कुल्हाडी़ न मारें

भविष्य अविज्ञात है, उसके संबंध में समय से पूर्व कुछ नहीं कहा जा सकता । नियति का ऐसा कोई निर्धारण नहीं है कि अमुक घटना कब अमुक प्रकार से घटित होगी परिस्थितियों के अनुसार भविष्य की कल्पनाएँ अथवा संभावनाएँ उल्टी भी हो सकती हैं । भविष्य के संबंध में इतनी अनिश्चितता होते हुए भी उसकी कल्पना करना और संभावित परिणाम की उपेक्षा करना-एक प्रकार से अनिवार्य ही है क्योंकि इसके बिना न तो कोई योजना बन सकती है और न कछ कार्य आरंभ किया जा सकता है । हानि उठाने और असफल होने के लिए भला कोई क्या और क्यों कुछ काम आरंभ करेगा ? अनेक तथ्यों और निष्कर्षो का सहारा लेकर मनुष्य काफी सोच-विचार करता है और जब उसे यह विश्वास हो जाता है कि इस कार्य को इस प्रकार करने से इतना लाभ होगा तो ही वह उसे आरंभ करता है । यह एक प्रकार से भविष्य निर्धारण ही तो हुआ । तीखी बुद्धि वाले अनेक तथ्यों के आधार पर दूर की सोचते हैं और ऐसे नतीजे पर पहुँचते हैं, जो प्राय: समय की कसौटी पर खरे ही उतरते हैं । व्यक्तियों संस्थाओं और सरकारों द्वारा प्राय: भावी योजनाएँ बनाई जाती है । हर साल बजट इसी अनुमान-आधार पर पास होते हैं । पंचवर्षीय योजनाओं में भविष्य की कल्पना को ही प्रधानता दी जाती है । समझदार व्यक्ति भी अपने जीवन की रीति-नीति बनाते है कार्य-पद्धति निर्धारित करते है और उनमें हेर-फेर लाते हैं । यह सब भावी संभावनाओं को ध्यान में रखकर ही किया जाता है । भविष्य निर्धारण के संबंध में जिसकी दृष्टि जितनी अधिक स्पष्ट होगी, वह उतना ही अधिक सुनिश्चित रहेगा और प्रगति कर सकेगा ।

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