विचारों की शक्ति बहुत अधिक हैं । यद्यपि अधिकांश लोगों को विचार कोरी कल्पना मात्र जान पड़ते हैं और बहुत से तो उनको गप-शप की तरह ही मानते हैं, पर इसका कारण यही है कि उन्होंने कभी इस विषय में गम्भीरता से विचार नहीं किया । सच पूछा जाय तो वह संसार विचारों का ही प्रतिरूप है । विचार सूक्ष्म होते हैं और संसार के पदार्थ तथा वस्तुएं स्थूल, पर उनकी सृष्टि रचना पहले किये गये विचार के अनुसार ही होती है । दर्शन शास्त्र के अनुसार तो यह समस्त जगत ही परमात्मा के इस विचार का परिणाम है कि एकोहं बहुस्यामि (मैं एक से बहुत हो जाऊं), पर यदि हम इतनी दूर न जायें तो हमको अपने सामने जो कुछ उन्नति, प्रगति, नये-नये परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं वे सब विचारों के ही परिणाम हैं । बड़े से बड़े महल, मन्दिर, मूर्तिंयों, रेल-तार, जहाज, रेडियो आदि अद्भुत आविष्कार उनके बनाने वालों के विचारों के ही फल होते हैं। उनके कर्ताओं के मन में पहले उन वस्तुओं से बनाने का विचार आया, फिर ये उस पर लगातार चिन्तन और खोज करते गये और अन्त में वही बिचार कार्य रूप में प्रकट हुआ ।
इस पुस्तक में बतलाया है कि मनुष्य यदि झूठी-मूठी