वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ, युगऋषि, संस्कृति पुरुष, परमपूज्य गुरुदेव पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी की क्रांतिकारी लेखनी ने नर को नारायण, मानव को महामानव बनाने वाली जीवन साधना का विश्वकोष रचकर रख दिया । जीवन की सभी व्यक्तिगत, पारिवारिक सामाजिक राष्ट्रीय समस्याओं पर उन्होंने अपनी कलम चलाई । पूज्य गुरुदेव कहते रहे हैं कि यह साहित्य मैंने रोते हुए हृदय से आँसुओं की स्याही से लिखा है । जो इसका स्वाध्याय करता है उसके जीवन में कोई परिवर्तन न आया हो, ऐसा हो ही नहीं सकता । जो मेरा साहित्य पड़ता है, वही मेरा शिष्य है । मेरे विचार बड़े पैने हैं । दुनिया को बदल देने का जो संकल्प हमने लिया है, वह सिद्धियों के बल पर नहीं अपने क्रांतिकारी विचारों के बल पर लिया है ।
पूज्यवर आचार्यश्री द्वारा भाष्य वेदों को पढ़कर आचार्य विनोबाभावे ने वेदों को मस्तक से लगाकर भाष्यकार गुरुदेव का कोटि-कोटि वंदन किया और वेदमूर्ति संबोधन दिया । उपनिषद् का भाष्य पढ़कर भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ० राधाकृष्णन ने लिखा कि काश! यह साहित्य मुझे जवानी में मिल गया होता तो मैं राजनीति में न जाकर आचार्यश्री के चरणों में बैठा अध्यात्म का ज्ञान ले रहा होता । भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ० शंकरदयाल शर्मा ने अपनी पुस्तक "देशमणि" में