संस्कृति संबोध

'संस्कृति' शब्द का अर्थ है, स्वच्छता, शुद्धि और श्रेष्ठता । जिस व्यक्ति के रहन-सहन में कोई दोष नहीं जिसका आचार-विचार ठीक है वही सभ्य और सुसंस्कृत कहा जाएगा। संस्कृति शब्द का तात्पर्य उन मूलभूत विचारों और व्यवहारों से है, जिन पर आचरण करने से मनुष्य का जीवन श्रेष्ठ बनता है।

जिस प्रकार वस्तुओं की साफ-सफाई से उनकी सुन्दरता बढ़ जाती है, उसी प्रकार मनुष्य के दोष-दुर्गुण दूर हो जाने के बाद उसका जीवन सुन्दर और सुखी हो जाता है । उसका अनगडपन सुघड़ता में बदल जाता है। ऐसा व्यक्ति हर जगह सम्मान पाता है । उसके व्यवहारों का दूसरों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अच्छे संस्कार उत्पन्न होने से न मन में गलत विचार आते हैं और न गलत काम होते हैं। अच्छे संस्कारों से अच्छे व्यक्तियों की संख्या बढ़ती जाती है । धीरे-धीरे पूरे समाज में ही सद्विचार, सद्भावना और सत्कर्मों का विकास होने लगता है । अगर संस्कार ठीक न हुए तो व्यक्ति न ठीक सोच पाएगा और न उसके काम ही ठीक होंगे। आज हम समाज में जितनी बुराइयाँ देख रहे हैं, उनकी जड़ में कुसंस्कार ही हैं । इन कुसंस्कारों के कारण ही हमारी संस्कृति का ह्रास हुआ । आवश्यकता यह है कि प्रत्येक व्यक्ति सुसंस्कृत बने और भारतीय संस्कृति को जीवन में उतारने का संकल्प करे । यह संस्कृति ही व्यक्ति के जीवन को आदर्श बनाती है, श्रेष्ठताएँ उभारती है और सिद्धांतों के प्रति लगाव पैदा करती है ।

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118