ईश्वर और उसकी अनुभूति

आप जान-बूझकर अमूल्य मानव जीवन को नष्ट कर देना चाहते है जो असफलता आ चुकी है जो हानि हो चुकी है, जो हाथ से चला गया है उसके लिए रोने -कलपने अथवा हाय-हाय करने से भूतकाल वर्तमान में आकर आपको सात्वना नहीं दे सकता । इसके लिए तो आपको भविष्य की संभावनाओं की ओर ही देखना होगा । उसके लिये आत्म-विश्वास के साथ पुरुषार्थ करना होगा । अन्यथा मनोविकारों के सर्वनाशी महाशत्रु आपकी सुख-शांति सब छीन लेंगे । जब संसार में सभी साथी मनुष्य का साथ छोड दें, पराजय और पीड़ाओं के दंश मनुष्य को घायल कर दें, पैरों के नीचे से सभी आधार खिसक जायें, जीवन के अंधकारयुक्त बीहड पथ पर यात्री अकेला पड जाए तो भी क्या वह जीवित रह सकता है, कुछ कर सकता है ? पथ पर आगे बढ़ सकता है ? अवश्यमेव । यदि वह स्वयं अपने साथ है तो कोई शक्ति उसकी गति को नहीं रोक सकती । कोइ भी अभाव उसकी जीवन यात्रा को अपूर्ण नहीं रख सकता । मनुष्य का अपना आत्म-विश्वास ही अकेला इतना शक्तिशाली साधन है जो उसे मंजिल पर पहुँचा सकता है । विजय की सिद्धि प्राप्त करा सकता है ।

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