साधना का अर्थ है अपने आप को साधना जिन देवी देवताओं की साधना की जाती है, वस्तुतः अपनी ही विभूतियाँ एवं सत्प्रवृत्तियाँ है। इन विशेषताओं के प्रसुप्त स्थिति में पड़े रहने के कारण हम दीन दरिद्र बने रहते हैं किन्तु जब वे जाग्रत, प्रखर एवं सक्रिय बन जाती हैं, तो अनुभव होता है कि हम रिद्धि सिद्धियों से भरे पूरे हैं। मनुष्य की मूल सत्ता एक जीवंत कल्पवृक्ष की तरह है। ईश्वर ने उसे बहुत कुछ देकर संसार में भेजा है। समुद्र तल में भरे मणि-मुक्ताओं की तरह मानवी सत्ता में भी असंख्य सम्पदाओं के भण्डार भरे पड़े हैं। किन्तु वे सर्वसुलभ नहीं हैं प्रयत्नपूर्वक उन्हें खोजना खोलना पड़ता है। जो इसके लिए पुरुषार्थ नहीं जुटा पाते वे खाली हाथ रहते हैं किन्तु जो प्रयत्न करते हैं उनके लिए किसी भी सफलता की कमी नहीं रहती इसी प्रयत्नशीलता का नाम साधना है।