प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कभी- कभी ऐसे अवसर आते हैं जब वह किसी सत्य सिद्धांत अथवा सत्य कर्म का अनुभव करता है ।। अधिकांश व्यक्ति इस संसार को एक प्रपंच कहते हैं, माया का खेल बतलाते हैं और इन्हीं बातों की ओट में प्राय: अपनी बहुत- सी त्रुटियों, अनैतिक कार्यों को क्षम्य समझ लेते हैं ।। वे कहते हैं कि इस संघर्षमय और आपाधापी से भरी दुनिया में रहकर मनुष्य सदैव सत्य, न्याय, समानता का व्यवहार नहीं कर सकता ।। जो लोग विद्या और बुद्धि की दृष्टि से प्रसिद्ध हैं और धर्म नीति दर्शनशास्त्र के सिद्धांतों के भी ज्ञाता है, वे भी व्यवहार में प्राय: अनुचित मार्ग का अवलंबन करते हैं, स्वार्थ के लिए परमार्थ की तरफ से आँखें फेर लेते हैं और जब कोई उनके गलत कार्यों पर आक्षेप करता है, तो यही बहाना पेश करते है कि आजकल की दुनिया में चालाकी, तिकडम और असत्य के बिना काम ही नहीं चल सकता ।।
पर महान पुरुषों का मार्ग इससे भिन्न होता है ।। वे अपने सामने एक ऊँचा आदर्श रखते हैं और उसके लिए आवश्यकता होने पर स्वार्थ का बलिदान करने को भी तैयार रहते हैं ।। यही कारण है कि वे जो बातें कहते हैं या