प्रेम ही परमेश्वर है
संसार में दो प्रकार के मनुष्य होते हैं, एक वह जौ शक्तिशाली
होते हैं, जिनमें अहंकार की प्रबलता होती है । शक्ति के बल पर वे
किसी को भी डरा- धमकाकर वश में कर लेते हैं । कम साहस के
लोग अनायास ही उनकी खुशामद करते रहते हैं किंतु भीतर- भीतर
उन पर सभी आक्रोश और घृणा ही रखते हैं । थोडी सी गुँजाइश
दिखाई देने पर लोग उससे दूर भागते हैं, यहीं नहीं कई बार अहंभावना
वाले व्यक्ति पर घातक प्रहार भी होता है और वह अंत में बुरे
परिणाम भुगतकर नष्ट हो जाता है । इसलिए शक्ति का अहंकार
करने वाला व्यक्ति अंततः बड़ा ही दीन और दुर्बल सिद्ध होता है ।
एक दूसरा व्यक्ति भी होता है- भावुक और करुणाशील ।
दूसरों के कष्ट, दुःख, पीड़ाएँ देखकर उसके नेत्र तुरंत छलक उठते
हैं । वह जहाँ भी पीड़ा, स्नेह का अभाव देखता है, वहीं जा पहुँचता
है और कहता है लो मैं आ गया- और कोई हो न हो, तुम्हारा मैं जो
हूँ। मैं तुम्हारी सहायता करूँगा, तुम्हारे पास जो कुछ नहीं है, वह मैं
दूँगा । उस प्रेमी अंत:करण वाले मनुष्य के चरणों में संसार अपना
सब कुछ न्यौछावर कर देता है, इसलिए वह कमजोर दिखाई देने पर
भी बड़ा शक्तिशाली होता है । प्रेम वह रचनात्मक भाव है, जो आत्मा
की अनंत शक्तियों को जाग्रत कर उसे पूर्णता के लक्ष्य तक पहुँचा
देता है ।। इसीलिए विश्व- प्रेम को ही भगवान की सर्वश्रेष्ठ उपासना
के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है ।
Write Your Comments Here: