महिला जागृति अभियान
माता के रूप में, देवी के रूप में विधाता की संरचना है- मातृशक्ति, महिमाशक्ति। यह उसका परमपूज्य दैवी रूप है। देवत्व के प्रतीकों में सर्वप्रथम स्थान नारी का और दूसरा नर का है। भाव- संवेदना धर्म- धारणा और सेवा- साधना के रूप में उसी की वरिष्ठता को चरितार्थ होते देखा जाता है।
महिला शक्ति ने पिछले दिनों अनेकानेक त्रास देखे हैं। सामंतवादी अंधकार युग से उपजे अनर्थ ने सब कुछ उलट- पुलट दिया है। उसे अबला समझा गया और कामिनी, रमणी, भोग्या व दासी जैसी स्थिति में रहने को विवश होना पड़ा। जो भाव पूज्य रहना चाहिए था, वही कुदृष्टि के रूप में बदल गया, किन्तु अब परिवर्तन का तूफानी प्रवाह इस आधी जनशक्ति को उबारने हेतु गति पकड़ चुका है। पश्चिम के नारी- मुक्ति आंदोलन से अलग यह महिला शक्ति के जागरण की प्रक्रिया दैवी चेतना द्वारा संचालित है, पर बुद्धि की आकांक्षा के अनुरूप ही चल रही है। महापरिवर्तन की बेला में जब सतयुग की वापसी की चर्चा हो रही है, तो गायत्री परिवार ही नहीं, सारे विश्व में इस आधी जनशक्ति के उठ खड़े होने एवं विश्व रंगमंच के हर दृश्य- पटल पर अपनी महती भूमिका निभाते देखा जा सकेगा। शिक्षा एवं स्वावलंबन रूपी विविध कार्यक्रम के माध्यम से महिला- जागरण की, उसके पौरोहित्य से लेकर युग नेतृत्व सँभालने तक की, जो संभावनाएँ व्यक्त की जा रही हैं, मिथ्या नहीं हैं।
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