गायत्री की शक्ति और सिद्धि

संसार में जितना भी वैभव, उल्लास दिखाई पड़ता है या प्राप्तकिया जाता है वह शक्ति के मूल्य पर ही मिलता है । जिसमें जितनी क्षमता होती है वह उतना ही वैभव उपार्जित कर लेता है । जीवन में शक्ति का इतना महत्वपूर्ण स्थान है कि उसके बिना कोई आनन्द नहीं उठाया जा सकता । यहाँ तक कि अनायास उपलब्ध हुए भोगों को भीनही भोगा जा सकता । इंद्रियों में शक्ति रहने तक ही विषम भोगों का सुक्ष प्राप्त किय जा सकता है । ये किसी प्रकार अशक्त हो जाँय तो आकर्षक से आकर्षक भोग भी उपेक्षणीय और घृणास्पद लगते है । नाड़ी संस्थान की क्षमता क्षीण हो जाय तो शरीर का सामान्य क्रिया कलाप भी ठीक तरह नहीं चल पाता । मानसिक शक्ति घट जाने पर मनुष्य की गणना विक्षिप्तों और उपहासास्पदों में होने लगती है । धनशक्ति न रहनेपर दर-दर का भिखारी बनना पड़ता है । मित्रशक्ति न रहने पर एकाकी जीवन सर्वथा निरीह और निरर्थक होने लगता है । आत्मबल न होने पर प्रगति के पथ पर एक कदम भी यात्रा नहीं बढ़ती । जीवनो द्देश्य की पूर्ति आत्मबल से रहित व्यक्ति के लिए सर्वथा असंभवही है ।

अतएव शक्ति का संपादन भौतिक

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