राजतंत्र और अर्थतंत्र स्थूल जानकारियाँ देने और व्यवस्थाएँ बनाने के प्रत्यक्ष कार्यक्रम हाथ में लै सकते है । इससे व्यक्ति की चतुरता और सम्पन्नता बढ़ सकती है । परन्तु मनुष्य के चिन्तन, चरित्र और व्यवहार रूाए मानवीय गरिमा के अदृश्य बनाने के लिए तो धर्म धारणा के, आध्यात्मिक स्तर के प्रयोग उपचारों की ही आवश्यकता होती है। गांधी जी के सत्याग्रह का, ऋषि दयानन्द, विवेकानन्द, विनोबा, कबीर, नानक आदि के सुधारवादी तेजस्वी आन्दोलनों का आधार भी जीवन्त, परिष्कृत, धर्म धारणा ही रही है।
दूध को गरम करने पर मलाई ऊपर आ जाती हैं। आशा की गई है कि भावनाशील वर्ग को दीपयज्ञों की ऊर्जा द्वारा उत्साहित, उत्तेजित, गर्म किया जा सकेगा । उस मर्मों से समुद्र मथन की तरह ऐसे नर-रत्न निकलेंगे, तो धीमी गति से बढ़कर या छलांग लगाकर सृजन शिल्पियों की आवश्यकता पूरी कर सकें। इससे महामानवों का ऐसा समुदाय खडा हो सकेगा जो युग सृजेताओ के अभाव को भली-भाँति पूरा कर देगा।