भारतवर्ष में सदा से स्त्रियों का समुचित मान रहा है ।
उन्हें पुरुषों की अपेक्षा अधिक पवित्र माना जाता रहा है ।
स्त्रियों को बहुधा देवी संबोधन से संबोधित किया जाता है ।
राम के पीछे उनकी जन्म- जात उपाधि देवी प्राय जुड़ी
रहती है । शांति देवी गंगादेवी दया देवी आदि देवी शब्द पर
कन्याओं के नाम रखे जाते हैं । जैसे पुरुष बी० ए० शास्त्री
साहित्यरत्न आदि उपाधियाँ उत्तीर्ण करने पर अपने नाम के
पीछे उस पदवी को लिखते हैं वैसे ही कन्याएँ अपने
जन्मजात ईश्वर की प्रदत्त दैवी गुणों दैवी विचारों दिव्य
विशेषताओं के कारण अलंकृत होती हैं ।
देवताओं और महापुरुषों के साथ उनकी अर्धांगनियों के
नाम भी जुडे़ है सीताराम राधेश्याम गौरीशंकर लक्ष्मीनारायण
उमामहेश मायाब्रह्म सावित्री सत्यवान आदि नागों में नारी का
पहला और नर का दूसरा स्थान है । पतिव्रता दया करुणा
सेवा सहानुभूति स्नेह वात्सल्य उदारता भक्ति-भावना
आदि गुणों में नर की अपेक्षा नारी को सभी विचारवानों ने
बढा-चढा माना है ।