गायत्री शक्ति का नारी स्वरूप
गायत्री महाशक्ति का स्वरूप और रहस्य
मनुष्य का शरीर विश्लेषण करके देखा जाए तो पता चलेगा कि पुरुष और नारी का भेदभाव स्थूल शरीर तक ही है ।। दोनों के मूल में काम करने वाली चेतना शक्ति में कोई तात्त्विक भेद नहीं ।। दोनों में समान विचार शक्ति काम करती है ।। दोनों को ही सुख दुःख, हानि- लाभ, जीवन- मरण की अनुभूति होती है ।। जैसी इच्छाएँ आकांक्षाएँ पुरुष की हो सकती हैं, कम- ज्यादा वैसी ही इच्छाएँ और अनुभूतियाँ स्त्री में भी होती हैं ।। आत्मिक दृष्टि से दोनों में कोई भेद नहीं ।। अन्तर केवल भावना और शरीर के कुछ अवयवों भर का है ।।
गायत्री भी एक प्रकार की ईश्वरीय चेतना है ।। वह न नारी है, न नर ।। फिर भी शास्त्रों में उसे जननी और माता कहकर ही संबोधित किया गया है 1 यह पढ़कर कुछ कोतूहल अवश्य होता है, पर उसमें गलत कुछ भी नहीं है । गायत्री महाशक्ति के स्वरूप और रहस्य को समझने के बाद इस विभेद का अंतर स्पष्ट समझ में आ जाएगा । वैसे जो उस महाशक्ति की उपासना नारी स्वरूप में न करना चाहें, वे निराकार ब्रह्म, प्रकाश अथवा सविता देवता की उपासना मानकर भी उस महाशक्ति से लाभान्वित हो सकते हैं, उसमें न तो कोई हानि है, और न हो कुछ दोष । माता स्वरूप मानकर गायत्री उपासना कुछ सरल अवश्य हो जाती है, इसलिए शास्त्रकार ने उस आद्यशक्ति को माता का स्वरूप दिया है ।
गायत्री महामंत्र भारतीय तत्वज्ञान एवं अध्यात्म विद्या का मूलभूत आधार है ।। चारों वेदों में उन्हीं २४ अक्षरों की व्याख्या हुई है ।।………….