क्या खाएं ? क्यों खाएं ? कैसे खाएं ?

गायत्री साधना सर्व सुलभ भी है और सर्वोत्तम फलदायीनी भी।  हमने स्वयं अपने इस छोटे से जीवन काल में सवा करोड़ से अधिक जप के पुरश्चरण किये हैं।  इस साधना में हमे जो अनुभव हुए है उनका वर्णन करना उचित न समझकर केवल इतना ही कहना चाहते है कि गायत्री ही भूलोक की कामधेनु है। यह मन्त्र इस भूतल का कल्पवृक्ष है।  लोहे को स्वर्ण बनाने वाली, तुच्छ को महान बनाने वाली, पारसमणि गायत्री ही है।  यह वह अमृत निर्झरिणी है, जिसका आचमन करने वाले को परम तृप्ति और अगाध शान्ति प्राप्त होती है।

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