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अंतरंग जीवन का...
अंतरंग जीवन का देवासुर संग्राम
कुसंग से आत्मरक्षा की आवश्यकता
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अंतरंग जीवन का देवासुर संग्राम
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Page Titles
हमारा आंतरिक महाभारत
ईश्वरोपासना के सत्परिणाम
हम दो में से एक का मार्ग चुन लें
श्रेय अथवा प्रेय
प्रगति का मूल मंत्र-आत्मोत्कर्ष
स्वार्थ को नहीं परमार्थ को साधा जाए
विश्व-मानव की अखंड अंतरात्मा
हम भी सत्य को ही क्यों न अपनाएँ
दृष्टिकोण का परिवर्तन
सद्गुण भी हमारे ध्यान में रहे
कुसंग से आत्मरक्षा की आवश्यकता
प्रशंसा और प्रोत्साहन का महत्व
आलस्य में समय न गवाएँ
श्रम से ही जीवन निखरता है
कर्तव्य-धर्म की मर्यादा तोडिय़े मत
सफलता ही नहीं-असफता भी
महत्वाकांक्षाएँ और असंतोष
ऐषणाएँ नहीं महानता अभीष्ट
पिशाचिनी पुत्रेषणा
लोकेषणा की प्रवंचना
सुख का मूलभूत आधार-संतोष
हम अशांत और आतंकित न हों
प्रसन्न रहें-प्रफुल्ल बनें
अहंकार की असुरता से बचा जाये
बड़प्पन की बात सोचें, बड़े काम करें
देवासुर संग्राम में हम निरपेक्ष न रहें
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
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नः
प्र
चो
द
या
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