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Akhand Jyoti
Year 2007
Version 1
मातृ स्मरण कविता
मातृ स्मरण कविता
October 2007
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Page Titles
परिवतर्न
सब कुछ पाया है पर खोया है अपनापन और सुकून
चमत्कारों का ज्ञान विज्ञान
इष्ट का निधार्रण गायत्री का वरण
मानवी काया की सबसे रहस्यमय रचना
भक्तिगाथा-२१ : प्रभु स्मरण, प्रभु समपर्ण, प्रभु विसजर्न
उल्कापिण्ड महाविनाश ही नहीं, महापरिवतर्न भी ला सकते हैं
अद्भुत हमारी वन संपदा, आइए इसे बचाएँ
मूतिर् रहस्य को जाकर बने उच्चस्तरीय साधक
'स्रष्टा की विचित्र विलक्षण पर सुनियोजित विधि व्यवस्था
न तो स्वयं से दूर भागें, न भीड़ से डरें
दुराचारी बनकर क्यों स्वयं को गिराते हैं?
पयार्वरण से हमारे संबंध तार-तार हो रहे हैं
'भगर्' शब्द का समझें ममर्
आयुवेर्द-५३ : आहार हमारा कैसा हो ताकि हम स्वस्थ रहें
योग चिकित्सा-१० : कैसे हो मोटापे से मुक्ति
आध्यात्मिक शल्य चिकित्सा है ध्यान साधना
रुद्र के अवतरण की बनी भूमिका
अनुदान और वरदान हेतु आइर् एक विशिष्ट वेला
अमृतवाणी : युग साधना में भागीदारी की दावत-
युगगीता-९३ : कैसे करें उस विराट पुरुष का ध्यान
चेतना की शिखर यात्रा-६५ : प्रतीक्षा में खड़ा भविष्य
कुछ आप कहें कुछ हम कहें
हो रहा है अब भारतीय अध्यात्म का वैश्वीकरण
शताब्दी वषर् की उलटी गिनती आरंभ
मातृ स्मरण कविता
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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