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Akhand Jyoti
Year 2004
Version 1
धर्मतन्त्र का परिष्कार...
धर्मतन्त्र का परिष्कार अत्यन्त अनिवार्य-अमृतवाणी पूर्वार्द्ध
November 2004
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Page Titles
आदश्र् की राह
उजास पर्व पर करें बोध कविता
अपनों से अपनी बात ः महान अभियान की विराट यात्रा ः हमारा सौभाग्य तथा दायित्व
गुरुकथामृत-५९ ः गुरुसत्ता का एक ही सन्देश उज्ज्वल भविष्य एक भवितव्यता
गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज में चलने वाले महत्त्वपूर्ण सत्र
स्वातन्त्र्य यज्ञ में आहुति-४
युगगीता-५९ ः परमात्मारूपी लाभ को प्राप्त व्यक्ति दुःख में विचलित नहीं होता
धर्मतन्त्र का परिष्कार अत्यन्त अनिवार्य-अमृतवाणी पूर्वार्द्ध
गुरुगीता-२६ ः गुरु ही इष्ट, इष्ट ही गुरु है
शिष्य संजीवनी-१४ ः अन्तरात्मा का सम्मान करना सीखें
ओंकार जप की विधि एवं विज्ञान
आर्युवेद-१९ ः आर्युवेद द्वारा मोटापे की सरल चिकित्सा (पूर्वार्द्ध)
निराशा के तमस को आश्शा के छोटे दीपों से मिटाएँ (दीपावली विशेष)
गायत्री अनुष्ठान का सर्वसुलभ विधान
मन्त्रशक्ति की महिमा न्यारी
गायत्री उपासना का भावनात्मक एवं वैज्ञानिक महत्त्व
टूटते-बिखरते परिवारों में नूतन प्राण आएँ
लम्बी उमर के अविज्ञात रहस्य
गायत्री द्वारा सम्पूर्ण दुःखों का निवारण
घोर अज्ञान का द्योतक नर-नारी का भेद
तीर्थों का मर्म एवं यात्राओं के उद्देश्य
अनन्त वत्सला वेदमाता गायत्री
बहिरंग नहीं, प्रभु के अन्तरंग सौन्दर्य को जाना
आध्यात्मक समाजवाद एवं पूरब की मनीषा ही युग को बदलेंगे
लक्ष्यपूर्ति हेतु स्वप्नदर्शी बनें
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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