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Akhand Jyoti
Year 1995
Version 1
परम पूज्य गुरुदेव...
परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- देवात्मा हिमालय एवं त्रषि परम्परा (जुलाई १९८० में शान्तिकुञ्ज में दिया गया प्रवचन)
July 1995
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Page Titles
आत्मिक प्रगति का अवलम्बनः सेवा-साधना
सही न्याय
नैतिकता के उत्थान पर ही सब टिका है
स्नायु संस्थान में छिपी है जादुई पिटारी
नादब्रह्म साधना का ज्ञान-विज्ञान
सौन्दर्य-बोध ने खोला मुक्ति का द्वार
कोरी कल्पना नहीं है अमैथुनी सृष्टि
खुदा परस्ती ने दिखाया कारूँ का खजाना
तुच्छता से महानता की ओर
यदि 'अर्थ' बन जाए अध्यात्म परायण
मन पृथक नहीं है शरीर से
जिजीविषा ही सफलता का पथ प्रशस्त करती है
क्या आप भी आत्महत्या करना चाहते हैं
सुख वस्तुतः है क्या?
अहंकार का उन्माद
दीर्घ सूत्री न बनें, विवेक को अपनायें
काश! मैं स्वयं को समझ पाता?
व्यक्तित्व की अनगढ़ता मिटाते हैं- अध्यात्म उपचार
अ. गुरुवर के सहचर, ब. युगऋषि का अपरिग्रह
अ. गुरु पूणमा की प्रेरणा, ब. तुमको कोटि प्रणाम
मंत्र मूलं गुरोवाक्यं-मोक्षमूलं गुरुकृपा
परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- देवात्मा हिमालय एवं त्रषि परम्परा (जुलाई १९८० में शान्तिकुञ्ज में दिया गया प्रवचन)
पुर्नप्रकाशित विशेष लेखमाला-१, युगशिल्पी अहमन्यता के विषपान से बचे रहें
क्षेत्रीय योग प्रशिक्षण कार्यक्रमः स्वरूप और विधि व्यवस्था
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
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यो
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नः
प्र
चो
द
या
त्
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