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Akhand Jyoti
Year 1990
Version 1
संवेदना उभरी तो...
संवेदना उभरी तो उलझने मिट जायेगी
October 1990
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अन्तःकरण की पुकार अनसुनी न करें
कर्म कब बन जाता है योग
प्रचण्ड मनोबल की प्रतिभा में परिणति
न जनता से गाफिल न मालिक से
यह समय चूकने का है नहीं
सद्ज्ञान वह जो सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें
पुरुषार्थ का बीजांकुर
संवेदना उभरी तो उलझने मिट जायेगी
दिव्य प्रकाश अवतरण की ध्यान साधना
शब्द तरंगों में निहित विलक्षण शक्ति
उपनिषदों के देश से उठेगा-विचार क्रान्ति का तूफान
क्या ईश्वर पर मुकदमा चलाया जा सकता है
भविष्य दशर्न महाकाल के अग्रदूत द्वारा
प्रेम सुधा रस बाँटो रे भाई
संवेदना बनाती है लेखनी को प्राणवान
सूक्ष्म सत्ता की सामर्थ्य और भी प्रचण्ड
चाहिए अग्रगामी-बलिदानी
सामूहिक चेतना का विकास अनिवार्य
बहिरंग की भटकन व्यर्थ है
प्राणशक्ति से अनुप्राणित होने की विधा
मत्स्यावतार की पुनरावृत्ति
लोकसेवी की सबसे बड़ी पूँजी
किसलिए मिली है यह सुर दुलर्भ काया
क्रांति का नया आयाम विचार क्रान्ति
प्रकृति की छत्रछाया में वापसी
इष्ट की ललक
एक मनश्चिकित्सक के रूप में पूज्य आचायर्श्री
पत्रों से झाँकता एक विराट पुरुष का व्यक्तित्व
मैं महाप्राण
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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