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Akhand Jyoti
Year 1989
Version 1
प्रकृति से छेड़छाड़...
प्रकृति से छेड़छाड़ हमें बड़ी मँहगी पड़ेगी
June 1989
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शक्ति का संचय भी अनिवार्य
सत्य एक ही है, शाश्वत एवं सनातन है
अपने युग की असाधारण महाक्रान्ति
चौथी शक्ति का अभिनव उद्भव
जड़ और चेतन एक दूसरे से पृथक हैं ही नहीं
मंत्रशक्ति की सिद्धि के मूलभूत आधार
प्रखर प्रतिभा ज्ञान साधना का ही परिपाक है
भव बन्धनों से मुक्ति, मोक्ष, सिद्धि
हम भी जान सकते हैं, भवितव्यता को
मानवी गरिमा को व्यक्तित्ववान ही जीवित रख पायेंगे
परमसत्ता के अनुदान हर जीवधारी को एक समान
मृत्यु को सदैव याद रखें
अध्यव्यवसाय से अजिर्त प्रामाणिकता
समझदारों के समझने योग्य कुछ तथ्य
गौरव एवं बड़प्पन की कसौटियाँ
समाधि वस्तुतः है क्या?
प्रकृति से छेड़छाड़ हमें बड़ी मँहगी पड़ेगी
स्मरण-शक्ति को यकैसे प्रखर बनाये
कामुकता का यह अतिवाद और भी हानिकारक
नादब्रह्म की शक्ति एवं उत्पत्ति
आत्मिकी का प्रथम सोपान-आत्मशोधन
सत्याग्रह बनाम आत्मबल
ज्योतिर्विज्ञान का सही स्वरूप जन-जन तक पहुँचे
देव संस्कृति की विशिष्टता-विविधता
चंचलता एक प्रकार का बचपना
सुसंस्कारिता के लिए संस्कार विधान
अपनों से अपनी बात, चल प्रज्ञा मंदिर-ज्ञानरथ
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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