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Akhand Jyoti
Year 1988
Version 1
सतयुगी व्यवस्था का...
सतयुगी व्यवस्था का मेरुदण्ड ः ऋषिसत्ता
September 1988
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Page Titles
उपासना के तीन चरण
ज्ञान सबसे बड़ा देवता
प्रगति का अनिवार्य आधार
मनुष्य में हिलोरें लेता चुम्बकीय महासागर
अपरिग्रह व्रत का परिपालन
स्वर्ग कहाँ? अपने ही इर्दगिर्द
वेदान्त जोड़ेगा अध्यात्म और विज्ञान को
व्यक्तिवाद और अनौचित्य का संकट
सतयुगी व्यवस्था का मेरुदण्ड ः ऋषिसत्ता
ध्यान धारणा का स्वरूप और उद्देश्य
जैवचेतना की सर्वोच्च शक्ति का सुनियोजन
मानसिक अस्तव्यस्तता भी थकान का एक कारण
नैतिकी एवं पारिस्थितिकी परस्पर अन्योन्याश्रित
घृणा एवं प्रेम को अतिवादी न होने दें
जहाँ हो जाती हैं सारी भाषाएँ मौन
आग से न खेलें तो ही ठीक है
सेवा साधना के व्रतधारी जरथुस्त्र
शक्तिकेन्द्रों का जागरण ऊर्जा का र्उध्वगमन
ठालीपन की नीरसता भारभूत
क्रियाकौशल में हमसे आगे हैं जीवजन्तु
किसे महत्त्व देंगे, दलीलों को या भावनाओं को?
हमीं आमन्त्रित करते हैं इन विपत्तियों को
प्रतिकूलताएँ हमें विचलित न करने पायें
दया भी-प्रताड़ता भी
चिरस्थायी सम्पदा चरित्रनिष्ठा
व्याधियाँ तन में नहीं, कहीं और उपजती हैं
अभिनव संकल्पों के साथ मनाया गया गुरुपर्व
अपनों से अपनी बातः सतयुग की वापसी इस प्रकार संभव होगी
इस वर्ष की सृजन साधना
अन्तःपुकार (गीत)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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