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Akhand Jyoti
Year 1988
Version 1
आत्मा पथिक है...
आत्मा पथिक है एवं शरीर सराय
Octuber 1988
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Page Titles
सिद्धि का केन्द्र अपना ही अन्तराल
पुरुषार्थ वाला स्वर्ग
कितना खोखला है यह नास्तिकवाद
आत्मा पथिक है एवं शरीर सराय
आत्मानुशासन का तत्त्वदर्शन
जीवन देवता की साधना एक नकद धर्म
समर्थ की समीपता
विचित्र विलक्षण यह सृष्टि
दायें मस्तिष्क को भी सोचने का अवसर दीजिए
अध्यात्म और विज्ञान की सहकारिता
पूर्णयोग की साधना एवं सिद्धि
धर्माचरण का मर्म
विकास या विनाश में से किसी एक का चयन
मेरा यहाँ कुछ नहीं, सब कुछ तेरा है
सद्गुणों का शिक्षण प्रकृति की पाठशाला में
विभूतियों की गंगोत्री ः संकल्पशक्ति
विधिविधानों की महत्ता एवं उपयोगिता
गीता करती है आज की समस्याओं का समाधान
अपनों से अपनी बात ः प्राणवान प्रतिभाओं की खोज
विशिष्टता का नये सिरे से उभार
प्रतिभा संवर्धन के तथ्य और सिद्धान्त
प्रतिभा संवर्धन का मूल्य भी चुकाया जाय
संगठन और कार्यक्रम का शुभारम्भ
नारी जागरण की दूरगामी सम्भावनाएँ
यह मानसून जल थल एक करेंगे
सुसंस्कारिता संवर्धन के दस उपक्रम
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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