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Akhand Jyoti
Year 1986
Version 1
कामुकता का भ्रमजजाल
कामुकता का भ्रमजजाल
November 1986
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Page Titles
महरे उतरे विभूतिया हस्तगत करे
कार्तिकी अमावस्या का ज्योति पर्व
ध्यानयोग का आधार ओर स्वरुप
भज गोविन्दम मूडमते
वेदान्त दर्शन का सार तत्व
अष्टाग योग का महत्वपूण साधन
प्रेम तेरे रुप अनेक
मानवी विकास के प्रारम्भिक सोपान
ध्र्मेहि परमोलोक धर्म सत्य प्रतिष्टितम
विज्ञान ओर अध्यातम बनेगे पूरक
क्या सष्टि का अन्त सचमुच निकट
दरारे पडने ओर बडने न पाये
प्रक्र्ति ही नही पुरुष भी
मानवी काया मे विलशणताओ के केन्द्र
एक ही काया मे दो व्यक्तित्व
रहस्यमय सिदिया जो प्रत्यश होती जा रही है
मनुष्य मात्र एक कोरा कागज है
बडप्पन बोझ पर नही व्यक्तिव पर निर्भर
ज्योतिर्विज्ञान की असदिग्ध प्रामणिकता
कान व आख खुले रखे
शक्ति सम्प्रेष्ण का तत्वज्ञान
कामुकता का भ्रमजजाल
ससार हमारी ही प्रतिध्वनि प्रतिछाया है
अग्निहोत्र का अन्त्रिश पर प्रभाव
गरीबो के साथ गरीब बनकर रहो
म्रत्यु से भयभीत क्यो
म्रत्यु से भयभीत क्यो
बुद का लोकसेवी परियोजकी का सन्देश
भारतीय सस्क्र्ति बनाम आरणयक सस्क्रति
देव से उत्रण कैसे हो
प्रग्ति ओर अवग्ति से भरी इक्किसवी सदी
अपनो से अपनी बात
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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