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Akhand Jyoti
Year 1983
Version 1
निर्भय बनें, प्रसन्न...
निर्भय बनें, प्रसन्न रहें
Octuber 1983
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Page Titles
परिवर्तन प्रगति की पहली सीढ़ी
कृतघ्नता किसी भी स्थिति में नहीं
समय रहते चेतने का ठीक यही अवसर
विवेक ने खोले अन्तर्चक्षु
अन्तः के देवासुर संग्राम का अभीष्ट समाधान
अपनी राह बनाएँ, अपने बूते आगे बढ़ें
आत्मिक प्रगति के चार सोपान
निर्भय बनें, प्रसन्न रहें
मानवी पुरुषार्थ की एक संकल्प भरी यात्रा
पराक्रम भीतर से उफनता है
मानव मस्तिष्क का विलक्षण रसायन शास्त्र
सपनों के माध्यम से अनुदान बरसाने वाले अदृश्य सहायक
वंशानुक्रम की उत्कृष्टता सुप्रजनन का मूल आधार
पृथ्वी के पिंजड़े से निकल भागने की महत्त्वाकांक्षी योजना
हम जल्दी ही विशाल विरादरी के सदस्य बनेंगे
ऋतम्भरा प्रज्ञा की आराधना-अभ्यर्थना
गायत्री मन्त्र की सफलता के आधार
एक महान सार्मथ्यदायी प्रक्रिया : प्राणायाम
यज्ञ प्रयोजनों में पवित्र अग्नि का उपयोग
अपनों से अपनी बात
युगसाहित्य की संजीवनी घर-घर पहुँचाने हेतु दो नये कदम
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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