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Akhand Jyoti
Year 1980
Version 1
आत्म-आवरण (कविता) -मंगल...
आत्म-आवरण (कविता) -मंगल विजय
November 1980
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Page Titles
जीवन एक प्रत्यक्ष कल्प वृक्ष
भूदेव की आराधना
ब्रह्माण्ड में ओत-प्रोत ब्रह्म सत्ता
'सर्व' खिलवेद ब्रह्म' अब अधिक प्रत्यक्ष
सापेक्षवाद एवं पूर्वाग्रह रहित सत्यान्वेषण
धर्म तर्क के न्यायालय में
जीवन और मरण की अविच्छिन्न श्रृंखला
त्याग का अन्धानुकरण न किया जाय
मनुष्य और प्रेतों की मध्यवर्ती श्रृंखला
जीवन की सभी विषमताओं से संघर्ष सम्भव
आप करे, आपुई फल पाये
निंदक नियरे राखिये
समस्त सफलताओ का मूल-मन
अन्तर्मन का परिष्कार योग साधना से
प्रतिभाओं की खेती रक्त-बीज तैयार करेगी
उद्ण्डता नहीं, सौम्य सज्जनता ही श्रेयस्कर
प्राणशक्ति का चिकित्सा उपचार में प्रयोग
अपनों से अपनी बात-व्यस्त प्रज्ञा परिजन भी इतना तो कर ही सकेंगे
हृदय रोग के तीन कारण, मानसिक तनाव और शारीरिक बढ़ाव और रक्त का दबाव
न कहीं संयोग है न सर्वज्ञ
मन की विलक्षण क्षमता
शिक्षा का उद्येश्य-व्यक्तित्व का विकास
तोप के गोले-जब फूल से बन गये
शीत ऋतु में प्रज्ञा पुत्रों के लिए अनुदान सत्र
आत्म-आवरण (कविता) -मंगल विजय
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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