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Akhand Jyoti
Year 1974
Version 1
अपनों से अपनी...
अपनों से अपनी बात- शान्तिकुञ्ज में पांच स्तर के शिक्षण की शृंखला
March 1974
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उपलब्धियों का सदुपयोग करना सीखें
भावना सर्वोपरि है, विधि विधान नहीं
सहृदयता के संवर्द्धन से ही विश्व कल्याण संभव होगा
विज्ञान और दर्शन के समन्वय की आवश्यकता
हमारी बुद्धिमत्ता भयावह किस्म की मूख्रता सिद्ध न हो
प्रकृति का उपहार अनुदान मक्खी जैसे जन्तुओं को भी मिला है
दधीचि की पुण्य परम्परा फिर प्रचलित की जाय
हम पुरखों से हर क्षेत्र में पिछड़े ही नहीं रहें
गर्मी-गर्मी ही नहीं शांति और शीतलता भी आवश्यक है
गंदगी की आदत छूटे तो कृमि कीटकों से जान बचे
रासायनिक आवेश हमें कठपुतली न बनाने पाये
कम खायें अधिक जियें
क्या सचमुच धर्म और राजनीति के दिन लद गये
हमारा दृष्टिकोण दुराग्रही न हों
मनोविकारों का अवरोध हमें अपंग बना देता है
उद्विग्नता ही स्वास्थ को चौपट करती है
देवताओं का धरती पर आगमन एक तथ्य
विज्ञान अध्यात्म के निकट पहुँच रहा है
विज्ञान अध्यात्म के निकट पहुँच रहा है
न कोई लाल होता न पीला, फूल सब श्वेत होते है
आत्मबोध जीवन का सर्वोपरि लाभ
योग शब्द के अर्थ का अनर्थ न किया जाय
नादयोग द्वारा दिव्य अनुभूतियों की उपलब्धि
अभीष्ट फलदायिनी गायत्री माता
अपनों से अपनी बात- शान्तिकुञ्ज में पांच स्तर के शिक्षण की शृंखला
प्राण प्रतिष्ठा-गीत
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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