यथा दीपो निवातस्थो नेगंते सोपमा स्मृता।
योगिनो यतचितस्य पुज्जयो योगात्मनः॥
“ जिस प्रकार वायु रहित स्थान स्थित दीपक चलायमान नहीं होता, वही स्थिति परमात्मा के ध्यान द्वारा योगी के जीते हुए चित की होती हैं।”