मनुष्य को एक पंख उग आया। विज्ञान का पंख। उसने जोर लगाया और आकाश में उड़ गया। पर अब वह मुक्त और शाँत नहीं था। उसे चारों ओर से जटिलता की आँधियों ने सताना प्रारम्भ कर दिया।
मनुष्य बहुत घबराया। प्रार्थना की हे प्रभो! कैसे संकट में डाल दिया। इससे तो अच्छा था, हमें जन्म ही न देते।
आकाश को चीरती हुई काल पुरुष की आवाज आई- ‘‘वत्स, आत्म-ज्ञान का एक और पंख उगा। भीतर वाली चेतना का भी विकास कर, वही संतुलन पैदा कर सकेगी।