आप जिसे सुखी और सफल समझते हैं, निकट से उसके विगत जीवन का अध्ययन कीजिए। हो सके तो सीधे उससे ही पूछ लीजिए कि क्या आपके जीवन में कभी कोई मुसीबत नहीं आयी? तब आपको ज्ञात होगा-सुख और समृद्धि आसमान से फटकर ही उसे आप से आप नहीं मिले हैं। कठिनाइयों और मुसीबतों ने उसके जीवन को भी उसी प्रकार झकझोरा था, जिस प्रकार वह आज आपको परेशानी में डाले हुए है। जब आपको यह तथ्य ज्ञात हो जाये, तो आप पुनः पता लगावें कि फिर किसने उसे उस विपत्ति-जाल से उबारा? क्या किसी जादूगर ने आकर जादू की छड़ी घुमाई और वे सब अवरोध काफूर हो गये? खोज करने पर आपको पता लगेगा, विपन्नताओं के निवारण में उसका आत्म विश्वास ही उसका मुख्य सहायक रहा है। जब संसार के सभी मित्रों ने, परिजनों ने उसका साथ छोड़ दिया था, तब इसी आत्म विश्वास ने आशा के रूप में उभर कर उसको आश्वस्त किया था। हिम्मत बढ़ाकर उसे सतत् प्रयास के लिए प्रेरित किया था।
विश्वास कीजिए आपकी आज की परेशानी अपनी निराशा का ही परिणाम है। आप हार मान बैठे हैं कि हमसे कुछ नहीं होगा, विपत्ति स्वयं के बूते नहीं टलेगी। चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा है। कोई प्रकाश दिखाने वाला नहीं, दुःखों से मुक्ति का कोई मार्ग नहीं सूझता। अब जरा अपना आत्म-विश्वास जगाइये, वर्तमान में उपलब्ध साधनों का- भले ही वे अपेक्षाकृत कम और छोटे हों, आशावादी दृष्टिकोण से मूल्यांकन करिये। उनके प्रति श्रद्धा का- आदर का भाव रखते हुए उनके सदुपयोग में जुट जाइये कुछ दिनों में ही देखेंगे कि स्थिति में परिवर्तन प्रारम्भ हो गया। निराशा आशा में, असफलता-सफलता में बदलनी प्रारम्भ हो गई।
-विवेकानन्द
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