कलाकार के हाथ अनगढ़ वस्तुओं को पकड़ते हैं और अपने उपकरणों के सहारे उन्हें नयनाभिराम सुन्दरता से भरते और बहुमूल्य बनाते हैं। कुम्हार मिट्टी से सुन्दर खिलौने बनाते हैं- मूर्तिकार पत्थर के टुकड़े को देवता प्रतिमा में परिणत करता है। गायक बाँस के टुकड़े से वंशी की ध्वनी निनादित करता है। धातु का टुकड़ा स्वर्णकार के हथौड़े की चोट खाकर आकर्षक आभूषण बनता है। कागज, रंग और कलम से बहुमूल्य चित्र बनाने का चित्रकार का कर्तृत्व कितना चमत्कार उत्पन्न करता है इसे कोई भी देख सकता है।
जीवन एक अनगढ़ तत्व है। इसे दयनीय दुर्गति से ग्रसित स्थिति में ही अधिकांश व्यक्ति किसी प्रकार गुजारते हैं। उससे लाभ और आनन्द उठाना तो दूर उलटे भार की तरह ढोने में ही कमर टूटती और गरदन मुड़ती दिखाई देती है।
क्या वस्तुतः जीवन ऐसा ही है जिसे रोते-खीजते किसी प्रकार पूरा किया जाना है? इसके उत्तर में इतना ही कहा जा सकता है कि अनाड़ी हाथों में पड़कर हीरा भी उपेक्षित होता है तो बहुमूल्य मनुष्य जीवन भी क्यों न भार बनकर लदा रहेगा। किन्तु यह भी स्पष्ट है कि यदि उसे कलाकार की प्रतिभा से सँभाला, सँजोया जाय तो निश्चय ही उसे देवोपम स्तर का- स्वर्गीय परिस्थितियों से भरा-पूरा जिया जा सकता है।
साधन जीवन जीने की कला है। उपासना भी इसी कला विज्ञान का एक पक्ष है। जो मानवी अस्तित्व की गरिमा समझ सका और उसे अनगढ़ स्थिति से निकाल कर सुसंस्कृत पद्धति से जी सका उसे सर्वोपरि कलाकार कह सकते हैं।
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