केन उपनिषद्, जैमिनीय ब्राह्मण का, तथा सामवेद के तलवकार ब्राह्मण के नौवें अध्याय में है। आरम्भ में केन शब्द का प्रयोग होने से उसका नाम केन उपनिषद् पड़ा।
‘केन शब्द का प्रयोग किसके द्वारा किससे क्यों कैसे ? कौन किसने आदि अर्थों से किया जा सकता है।
मानव जीवन का सबसे बड़ा प्रश्न है, वह क्या है, क्यों है ? किसलिए है ? किसने उसे भेजा ? क्यों भेजा ? यह सब क्या है ? क्यों है ? किसका है ? अन्त में कहाँ जाना है? क्या सोचें? क्या करें? प्रस्तुत वस्तुओं का क्या प्रयोग करे ? सम्बन्धित व्यक्तियों से क्या सम्बन्ध रखे ? उपलब्धियों को कहाँ नियोजित करे, और बाधाओं से क्योंकर निपटे ? यदि इन प्रश्नों का महत्व समझा जा सके और उनका उत्तर ढूंढ़ते हुए आत्मिक प्रगति के पथ पर चला जा सके तो तत्वज्ञान की वह दिव्य उपलब्धि मिल सकती है जिसे केन उपनिषद् ने आत्मोपलब्धि से पुकारा और सराहा है।
----***----