स्वामी विवेकानन्द जब इंग्लैण्ड प्रवास पर थे, तब उनने अपने एक प्रवचन में कहा-मुझे 100 समर्पित व्यक्तियों की आवश्यकता है। जिनके साँचे से मैं नई प्रतिभायें ढाल सकूँ।
19 वर्षीया मोबुल ने विवेकानन्द साहित्य पहले भी पढ़ा था, भारत की सेवा करने की कल्पनायें उनने बार की थीं। यह भाषण उन्हें ऐसा लगा, मानो सीधा उन्हीं के लिए कहा गया हो।
कु0 नोबुल ने कहा- ‘एक मैं अपने को समर्पित करती हूँ।19 और आप ढूंढ़ लें। वे भारत चली आयी। स्वामी जी ने उन्हें संन्यास दिया और निवेदिता नामकरण कर दिया। वे आजीवन स्वामी जी के मार्गदर्शन में भारत की सेवा करती रहीं।