आनन्द की देवी

December 1996

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इन दिनों वह काफी असमंजस में था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने जीवन के लिए किस मार्ग का चुनाव करें उसके मित्र , सम्बन्धी , रिश्तेदार - कुटुंबी सभी अपनी चालाकों, चतुरता से भरपूर ऐश्वर्य-विलास का उपभोग कर रहे थे। सुखभोग में निमग्न इन सभी की सलाह थी कि वह भी उसी मार्ग का अनुसरण करें, जिस पर वे सभी चल रहे हैं। मित्रों ने सलाह दी-”तुम युवा हो, तुममें भरपूर साहस है शारीरिक सौंदर्य की दृष्टि से भी तुम देवकुमार लगते हों । यूनान की सुंदरियों में तुम्हारे बारे में अनेकों किम्वदंतियां प्रचलित है। वे सभी तुमको वरण करना चाहती है तुम्हारे पास पूर्वजों की अकृत धन-सम्पत्ति है यश -सम्मान और वैभव- विलास से भरे-पूरे इस जीवन का भरपूर उपभोग करो।

लेकिन न जानें क्यों उसे इन सबकी सलाह पसन्द नहीं आयी। उसका मन किसी अनजाने भय से कांप उठता । न जाने क्यों उसे लग रहा था कि इन सभी के द्वारा सुझाया गया मार्ग जीवन को नष्ट कर देने का मार्ग है। मानव जीवन सुख -भोग से ऊपर है, लेकिन क्या? उसे यह समझ में नहीं आ रहा था। एक अबूझ पहेली उसके सामने थी जिसका हल वह खोजना चाहता था। पर कोई हल नहीं निकल रहा था। उद्विग्नता परेशानी और गहरे असमंजस की इस मनोदशा में वह घर छोड़कर एकान्त में चला गया।

एकान्त के इन क्षणों में वह देव-सत्ताओं की आराधना में तल्लीन हो गया। बीतते दिनों के साथ तल्लीनता भी बढ़ती गयी। एक रात्रि उसके सामने दो ज्योति पुँज प्रकट हुए जो थोड़े ही समय में दो देवियों में बदल गए। दोनों देवियां एक -से -एक बढ़कर सुन्दर थीं ज्योतिर्मय थी। दोनों उसकी सम्बोधि के कहने लगी।

पहली देवी बोली -” तुम किस दुश्चिन्ता में पड़े हो । तुम मेरा अनुसरण करो। मैं तुम्हें संसार की सभी चिन्ताओं से मुक्त रखूंगी। मैं तुम्हें ऐशोआराम की दुनिया में ले चलूंगी । जहां किसी चीज की कमी नहीं होगी। खानें को एक से एक बढ़िया सुस्वाद व्यंजन होगे। पहनने असाधारण वस्त्रालंकार। रहने को भव्य महलों की कमी न होगी। सोने को मखमली गद्दे , रत्न जटिल पलंग होगे। महल के चारों ओर सुन्दर बाग-बगीचे होंगे, सारा वातावरण सुगन्धित और लुभावना होगा। तुम मेरा अनुसरण करो। मैं तुम्हें सांसारिक दुःख -दारिद्रय से मुक्त रखूंगी।”

देवी की सलाह पर वह हल्के से मुस्कराया । यह वही सलाह थी जो उसके मित्र-कुटुम्बी दिया करते थे। हां अबकी बार यह पहले से कही अधिक चमत्कारिक एवं आकर्षक रूप में प्रस्तुत की गयी थी। थोड़ी देर चुप रहने के पश्चात उसने देवनल से उसका नाम पूछा। इस जिज्ञासा पर देवी ने कहा -’ ऐश्वर्य के अभिलाषी तो मुझे ‘सुख की देवी‘ के नाम से जानते हैं, परन्तु कुछ सिरफिरे दार्शनिकों और कंगाल फकीरों ने मुझे’विलास की देवी’ कहा है।

इतने में दूसरी देवी भी आ गयी। उसके ज्योतिर्मय सौंदर्य में मातृत्व का प्रकाश झलक रहा था वात्सल्य और अपनत्व भरे स्वरों में उसने उसे सम्बोधित करते हुए कहा-” बेटे ! मैं जानती हूं कि तुम जीवन के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़े हो और अपने लिए रास्ता तलाश रहे हो। तुम मेरा अनुसरण करो। मैं तुम्हें जीवन के सच्चे और आत्मिक आनंद की दुनिया में लिए चलती हूँ।

इस पर पहली देवी ने कहा-” सावधान युवक । इसकी भोली बातों के बहकावे में कभी मत आना । इसका मार्ग अत्यन्त दुर्गम और लम्बा है कठिनाइयों ओर चुनौतियों से भरा हुआ है इसकी अपेक्षा मेरा मार्ग अत्यन्त ही सरल और छोटा है।

“बेटे हरक्यूलिस! “ अब की बार न जाने क्यों दूसरी देवी ने उसे उसके नाम से सम्बोधित किया। प्रेमपूर्ण स्वरों में वह कह रही थी।-”वास्तविक सुख के लिए संसार का कोई मार्ग लम्बा या छोटा नहीं होता, न सरल ही होता है। बिना पीड़ा और परिश्रम के आसानी से मिलने वाली वस्तु मूल्यवान नहीं होती। ईश्वर ने हर वास्तविक सूख और आनन्द की कीमत तय कर रखी है, जिसका भुगतान मनुष्य को परिश्रम और कष्ट- सहित

इस पर पहली देवी ने कहा-” सावधान युवक । इसकी भोली बातों के बहकावे में कभी मत आना । इसका मार्ग अत्यन्त दुर्गम और लम्बा है कठिनाइयों ओर चुनौतियों से भरा हुआ है इसकी अपेक्षा मेरा मार्ग अत्यन्त ही सरल और छोटा है।

“बेटे हरक्यूलिस! “ अब की बार न जाने क्यों दूसरी देवकी ने उसे उसके नाम से सम्बोधित किया। प्रेमपूर्ण स्वरों में वह कह रही थी।-”वास्तविक सुख के लिए संसार का कोई मार्ग लम्बा या छोटा नहीं होता, न सरल ही होता है। बिना पीड़ा और परिश्रम के आसानी से मिलने वाली वस्तु मूल्यवान नहीं होती। ईश्वर ने हर वास्तविक सूख और आनन्द की कीमत तय कर रखी है, जिसका भुगतान मनुष्य को परिश्रम और कष्ट- सहिष्णुता के रूप में चुकाना पड़ता है जिस किसी क्षेत्र में तुम प्रसिद्धि पाना चाहते हो, उसमें तुम्हें ईमानदारी और प्राणपण से जुटना पड़ेगा। तुम्हारे रास्ते में कठिनाइयां आएगी, रुकावटें आएगी पर तुम्हें साहस और धैर्य से सबका मुकाबला करना होगा। वास्तविक सुख मैं तुम्हें इन्हीं शर्तों पर उपलब्ध करवा सकती हूं।

अपनी बात जारी करते हुए उसने कहा-” हैियूलिस, तुम कौन - सा सुख पाना चाहते हो।

भूख के बिना भोजन, प्यास के बिना पानी थकान के बिना आराम, नींद के बिना सोना और बिना इच्छा के भोग इन से क्या सुख की अनुभूति कर सकोगे? तुम्हारी युवा पीढ़ी सुख के सपनों में अपनी आयु बैठे-ठाले बिता देती है वह बिना परिश्रम किए बिना कष्ट से सब कुछ पा जाना चाहती है लेकिन उन्हें मिलता क्या है विफलता, निराशा, हताशा, कुण्ठा, पीड़ा और यातना। मैं सज्जनों की परम मित्र सच्चे मित्रों की सहयोगी और श्रमशीलों की अधिष्ठात्री एवं संरक्षक हूं मेरे अनुयायों की दावतें खर्चीली नहीं होती परन्तु स्वादिष्ट होती क्योंकि भूख लगने पर ही वे खाते हैं और प्यास लगने पर ही व पीते हैं उन्हें पत्थरों पर भी गहरी नींद आ जाती है क्योंकि वे कठोर परिश्रम से अपना जीविकोपार्जन करते हैं जागने पर उनकी प्रफुल्लता ईर्ष्या की चीज होती है । आत्म -सन्तोष उनकी स्वाभाविक सम्पत्ति होती हैं क्योंकि अपनी क्षमताओं को वे लोक कल्याण में लगाते हैं।

इस देवी की बातों में इरक्यूलिस को अपना समाधान मिल रहा था। देवी मातृत्व एवं वात्सल्य भरे कथन की निर्मलता में उद्विग्नता, परेशानी और असमंजस गायब होते जा रहे थे। उसने दूसरी देवी से उसका नाम पूछा। देवी ने कहा लोग मुझे ‘आनन्द की देवी ‘ कहते हैं।

देवी के इस उत्तर के साथ ही हरक्यूलिस को उसका जीवन मार्ग मिल गया। उसने ‘आनन्द की देवी’ का अनुगमन किया और लोकहित में ऐसे-ऐसे असम्भव और कठिन कार्य किए, जिससे वह संसार में अमर हुआ। अभी भी यूनान में मान्यता है कि हरक्यूलिस पर देवताओं की बड़ी कृपा थी और असम्भव को सम्भव कर दिखाने की अपनी प्रवृत्ति के कारण आज भी कठोर या श्रमसाध्य कार्य को ‘हरक्यालिज्म टास्क’ कहा जाता है।


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